भीमळ की लेतँण और सांदण की परोठी

Parothi
Parothi

क्या आपतें पता छन की गौं मा मट्ठा के पर छोल्दा, दही कै भांडा पर जमाये जांदी? मट्ठा छोळांण वाला बर्तन कैं बोल्दा परेड़ू और दही जमौंण कैं प्रयोग होंदी परोठी।अब तक आपतें पता चलीगी होलु कि आज हम बात कौला परेड़ू और परोठी की काष्ठकला और वांकु हमारा घर बार मा प्रयोग। एक सामान्य परेड़ू लगभग २०-५० लीटर तक कु होन्दु, बाकि कुछ ये सि बड़ा और कुछ छोटा भी होंदा।येका विपरीत परोठी लगभग ३-५ लीटर की होंदी और साइज मा भी कॉम्पैक्ट।

For reading in english: Wooden utensil in himalayans

मैंन त कभी देखि नी पर बड़ा बुजुर्ग बताउँदा कि ये बर्तन बाणोंणक तें चुनेर ब्यवसायिक लोग गौं गौं मा खराद लगौंदा थाई, और वीं जगह पर जतका लोगों तें यु बर्तन छेन्दु लगभग तत्कि बनैक फिर हैका गौं मा खराद लगौंदा थाई।बात जब खराद कि आयी त आपलोगों तें बतौण चांदू कि खराद पानी सी चलण वाली एक टरबाइन टाइप होंदी, जना की आटाचक्की कि टरबाइन, पाणी की धार पर टरबाइन घुमदी और वैका सहारा सी खराद, घूमती खराद फर फिर छेनी और नुकीला सब्बल सी लकड़ी तें खोखला करीक परेड़ू बनाये जांदू।कखि न कखि ये मा पाणी सि चलाये जाण वाली टरबाइन विज्ञानं कु प्रयोग होन्दु।एक बार जब लकड़ी खोखली ह्वे जांदी त वेका बाद काष्ठकार ये पर विभिन्न कलाकृति करदा और  येतें और भी सुन्दर बणाऊंदा।एक बड़ा बर्तन बनाऊंण मा लगभग ३-५ घंटा कु समय लगी जांदू।

ये बर्तन पर दही जमाये जांदी और मट्ठा छोले जांदी, जै वजह सी यु सांदण नाम की लकड़ी सी बणाये जांदू। सांदण की  लकड़ी न त जल्दी फटदी(दरार वगैरह) और ना जल्दी सड़दी।एक बार मट्टा छोलेगी, त परेड़ू तें उल्टु करे जांदू ताकि पाणी सुखी जाऊ, और परेड़ू ख़राब भी न हो। मट्टा छोळांण क तें तीन चीज प्रमुख होंदी
१- लेतण – रौड़ी तें घुमाऊंण मा मदद करदी।
२- रौड़ी – दही छोलदी मट्टा बनौण का खातिर।
३- विडियो देखा और मैं तें भी बतावा – रौड़ी अटकौंण कैं प्रयोग होंदी , ताकि पूरी ताकत सी बिना रौड़ी का संतुलन ख़राब करीक मट्ठा छोले जाऊ।

परोठी कु प्रयोग दही जमौंण का साथ साथ वाद्य यंत्र कांस की थकुली का निस भी रखे जांदू, ताकि खोखला होणा का वजह सि आवाज अच्छी ऐ जांदी। पहली का लोग ब्यो बारात मा सबसी छोटी साइज मा दही की कमोळी लेकें जांदा थाई , पर आज वोकुं स्थान स्टील का ठेकी न लेली।स्टील शरीर तें इतना बढ़िया नि, किले कि ये मा रख्यां खाद्य पदार्थ  का प्रोटीन एवं विटामिन कु संरक्षण काम रांदू जबकि लकड़ी का बर्तन मा काफी हद तक ६० ~ ९० % तक  संरक्षित रांदा और क्वी साइड इफ़ेक्ट भी नी। येका अलावा भी काफी प्रयोग छन, जु समय समय पर बदलेंदी रांदा।

नोट: आज भी उत्तराखण्ड का हर गौं गळा मा घ्यू , दूध और दही मखन संपन्नता का प्रतीक छन। व्यावसायिक रूप लेना का खातिर लोग अब दूध तें ज्यादा महत्व देंदा।

डेक्लाइमर: यिं  पोस्ट की सारी फोटो और विडियो खुदेड़ प्रवासी न क्लिक नई कारी। हमन यी फेसबुक बिटि डाउनलोड कारी। अगर कैन यी पर्सनल क्लिक कारी वु  हमतें वैकि असली कॉपी देखैक क्रेडिट का वास्ता संपर्क करि सकदा।

For reading in english: Wooden utensil in himalayans

आज ये बर्तन की मांग कम होना का कारण,खराद त कखि दिखेन्दि नी,और यिं काष्ठकला मा माहिर चुनेर लोगोंन भी अपड़ा रोजी रोटी का खातिर ब्यवसाय बदली गैना। कला पूर्ण विलुप्ति का कगार फर चली गैनी।जरूरत छन ऐना काष्ठ कलाकारों तें बढ़ावा देणं कु, बल कुछ नि त छोटी परोठी त हम ख़रीदी सकदा।मैं यें कला और वे सी जुड़यां सभी कास्तकारों तें सेवा सौंळि बोल्दु, और यु पोस्ट वोंकि कला तें प्रमोट का वास्ता समर्पित।